साँभर पश्चिमी राजस्थान में साँभर झील के दक्षिण पूर्वी किनारे पर स्थित नगर है और नमक के निर्यात के कारण काफी प्रसिद्ध है। इसका प्राचीन नाम 'शाकम्भरी' है। महाभारत के आदि पुराण में इसका उल्लेख है। स्कंदपुराण ने इसके आसपास के प्रदेश को 'शाकंभर सपादलक्ष' की संज्ञा दी है। यहाँ की खुदाई में प्राप्त यवन यौधेय, और हिंद-समानी मुदाएँ एवं उसी समय के मकान और अन्य वस्तुएँ भी इसकी प्राचीनता की द्योतक हैं।
साँभर कई सदियों तक चौहानों की राजधानी रही और साँभर के हाथ से निकल जाने पर भी चौहान राजा 'संभरीशव' (शाकंभरीराज) कहलाते रहे। अजयराज चौहान ने संवत् ११७० के लगभग साँभरी के स्थान पर अजमेर को अपना राजनगर बनाया। पृथ्वीराज की पराजय के बाद यहाँ मुसलमानों का राज्य हुआ। सन् १७०८ में जयपुर और जोधपुर के राजाओं ने इसपर अधिकार किया। अब इसका महत्व मुख्य रूप से साँभर नमक के कारण है।
साँभर में शाकंभरी देवी के मंदिर का उल्लेख पृथ्वीराजविजय में भी है। नगर का नाम शाकंभरी देवी के नाम से 'साँभर' हो गया है। शाकम्भरी माता का सिद्धपीठ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर मे होने के कारण चौहानों को वहाँ जाने मे बहुत समय लगता था इसलिए साम्भर झील के मध्य उन्होंने शाकम्भरी देवी का मंदिर बनवाया
भारत के राजस्थान राज्य में जयपुर नगर के समीप स्थित यह लवण जल (खारे पानी) की झील है। यह झील समुद्र तल से 1,200 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। जब यह भरी रहती है तब इसका क्षेत्रफल 90 वर्ग मील रहता है। इसमें चार नदियाँ (रुपनगढ,मेंथा,खारी,खंड़ेला) आकर गिरती हैं। इस झील से बड़े पैमाने पर नमक का उत्पादन किया जाता है।
सांभर झील
स्थान
राजस्थान, भारत
निर्देशांक
26°58′N 75°05′E / 26.967°N 75.083°E
प्रकार
खारी झील
जलसम्भर
5700 किमी²
द्रोणी देश
भारत
अधिकतम लम्बाई
35.5 किमी
अधिकतम चौड़ाई
3 से 11 किमी
सतही क्षेत्रफल
190 से 230 किमी²
औसत गहराई
0.6 मी से 3 मी
अधिकतम गहराई
3 मी
सतही ऊँचाई
360 मी
बस्तियाँ
सांभर, जबदीनगर, गोविन्दी, गुधा, झाक,
Sambhar Salt Ltdad
मध्यकाल में यह क्षेत्र भील राज्य का प्रमुख व्यावसायिक केंद्र रहा [1] अनुमान है कि अरावली के शिष्ट और नाइस के गर्तों में भरा हुआ गाद (silt) ही नमक का स्रोत है। गाद में स्थित विलयशील सोडियम यौगिक वर्षा के जल में घुसकर नदियों द्वारा झील में पहुँचाता है और जल के वाष्पन के पश्चात झील में नमक के रूप में रह जाता है।
पौराणिक उल्लेख संपादित करें
महाकाव्य महाभारत के अनुसार यह क्षेत्र असुर राज वृषपर्व के साम्राज्य का एक भाग था और यहाँ पर असुरों के कुलगुरु शुक्राचार्य निवास करते थे। इसी स्थान पर शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का विवाह नरेश ययाति के साथ सम्पन्न हुआ था।
देवयानी को समर्पित एक मंदिर झील के पास स्थित है। अवेध बोरवेल के चलते तथा परवासी परिंदों को सुरक्षित रखने के लिए नरेश कादयान द्वारा जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर केर दी है।
एक अन्य हिंदू मान्यता के अनुसार, शाकम्भरी देवी जो कि चौहान राजपूतों की रक्षक देवी हैं, ने यहां स्थित एक वन को बहुमूल्य धातुओं के एक मैदान में परिवर्तित कर दिया था। लोग इस संपदा को लेकर होने वाले संभावित झगड़ों के लेकर चिंतित हो गये और इसे एक वरदान के स्थान पर श्राप समझने लगे। लोगों ने देवी से अपना वरदान वापस लेने की प्रार्थना की तो देवी ने सारी चांदी को नमक में परिवर्तित कर दिया। यहाँ शाकम्भरी देवी को समर्पित एक मंदिर भी उपस्थित है।
वैसे माता शाकम्भरी देवी का मुख्य मंदिर सहारनपुर मे है चौहानों ने यहां पर भी माँ शाकम्भरी देवी की स्थापना की थी
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